हार्राखेड़ा सोसायटी से जशवंत सिंह जैसे कई किसान 'अन्नदाता कंपनी' का सुपय दानेदार खाद लेकर आए, लेकिन जब उन्होंने खाद की बोरियों को तौला, तो उनके पैरों तले ज़मीन खिसक गई।



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बोरी पर साफ़-साफ़ लिखा है – नेट वज़न: 50 किलो (बोरी सहित 50.150 किलो), लेकिन असल वज़न निकला महज़ 48 किलो कुछ ग्राम। यानी एक बोरी में लगभग 2 किलो खाद कम! अब सोचिए, अगर एक किसान के साथ ऐसा होता है, तो एक पूरी रेक में कितने क्विंटल खाद चोरी हो रही है? ये कोई मामूली चूक नहीं – ये तो करोड़ों का खुला घोटाला है!


सबसे बड़ा सवाल – क्या खाद असली है भी या नहीं?

कहीं ये नकली खाद तो नहीं जो ज़मीन को ज़हर बना दे? किसान जो पसीना बहाकर खेत सींचते हैं, अगर उन्हें ही गुणवत्ताहीन खाद मिले तो उत्पादन कैसे होगा? देश की रीढ़ अगर लहूलुहान हो गई, तो फिर राष्ट्र कैसे मजबूत बनेगा?


और अफ़सोस की बात यह है कि प्रशासन इस पर चुप है। न कोई जांच, न कोई कार्रवाई। क्या सिस्टम किसी की पकड़ में है? क्या इन भ्रष्ट कंपनियों को सरकारी संरक्षण प्राप्त है?


अब वक्त आ गया है कि इस पूरे मामले की उच्च स्तरीय जांच हो। किसानों को न्याय मिले, दोषियों को सज़ा और ऐसी कंपनियों पर कड़ी कार्रवाई हो।


यह केवल एक किसान का दर्द नहीं है, ये पूरे देश के अन्नदाताओं की चीख है। और जब अन्नदाता ही असुरक्षित होगा, तो देश का भविष्य भी खतरे में होगा।


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