बैरसिया।। क्षेत्र की ग्राम पंचायतों में सरकार की मंशा अनुसार विकास कार्य नहीं हो पा रहा है। जैसा पहले कहा जाता था कि पहले सरकार विकास कार्यों के लिए एक रुपया आवंटित करती थी, लेकिन उसमें से बहुत कम पैसा ही वास्तव में जमीनी स्तर पर पहुंच पाता था। यह भ्रष्टाचार, अपव्यय और योजना के प्रभावी क्रियान्वयन में कमी का संकेत देता था। सरकार द्वारा धन आवंटित किए जाने और वास्तविक रूप से विकास कार्य करने में अंतर था। इसका मतलब है कि आवंटित धन का एक बड़ा हिस्सा कहीं बीच में ही अटक जाता था। यही वजह थी कि धीरे-धीरे यह बात जब उच्च स्तर पर पहुंची तो सरकारों द्वारा विकास के लिए आबंटित राशि सीधे जमीनी स्तर पर पहुंचाने पर जोर दिया इसके परिणाम भी बेहतर साबित हुई है। लेकिन अब भ्रष्टाचारियों ने विभिन्न तरीकों से सीधे जमीनी स्तर पर आने वाली विकास राशि में भी सेंध लगाने का विकल्प तलाश लिया ऐसी चर्चाएं भी अब खूब सुनाई दे रही है। अलबत्ता अब विना सरकारी कर्मचारियों और अफसरों की मिलीभगत के विकास राशि का कोई भी दुरुपयोग नहीं कर सकता है। यही वजह है कि अब जिस भी विभाग के आधीन विकास कार्यों को जमीन पर उतारने अथवा जिनकी निगरानी में काम होते है उस विभाग के अफसर सीधे तौर पर जिम्मेदार होते हैं। अब ऐसे में दलालों बिचौलियों ने विभागीय अधिकारी कर्मचारी अथवा स्थानीय जनप्रतिनिधियों से सीधे सेटिंग कर रखीं हैं। ताकि इनका काम चलता रहें। अब ऐसे हालात देख कुछ सचिव भी दाएं-बाएं से ठेकेदारी पर उतर गये ऐसी बातें भी गांव गली मौहल्ले में चर्चा का विषय बनी हुई है। सूत्र बताते हैं कि इन्हीं रसूखदार लोगों का क्षेत्र की पंचायतों में दबदबा है. जो पंचायतों में मनमर्जी से काम करते हैं। यह तथाकथित ठेकेदार पंचायतों में विकास कार्य के लिए मिलने वाली विभिन्न मदो की राशि से सीसी सड़क, तालाब, पुल, पुलिया, भवन, सुदूर सड़क, इत्यादि निर्माण कार्य में घटिया कार्य कर खानापूर्ति करते हैं।? गुणवत्ताहीन कार्य ज्यादा दिनों तक नहीं टिकते और कई बार यह ठेकेदार अफसर इंजीनियरों की मिलीभगत से बगैर काम कराएं ही राशि निकाल लेते हैं, जबकि जमीन पर काम होता ही नहीं है। जब मामले में जांच की नौबत आती है तो सरपंच-सचिव पर गंभीर आरोप लगते हैं। क्योंकि निर्माण एजेंसी ग्राम पंचायत को ही बनाया जाता है। यह पूरा खेल जनपद में बैठे आला अफसरों, इंजिनियरों की सांठ-गांठ से चलता है. कई गड़बड़ियों के मामलों में ग्रामीणों ने शिकायतें भी की लेकिन यही अफसर जांच के नाम पर सिर्फ खाना पूर्ति कर मामले को दबा देते हैं। जानकारों का कहना है कि पंचायतों में बढ़ते तथाकथित ठेकेदारों और दलालों के हस्तक्षेप और बड़े नेता अफसरों की अनदेखी से हालात वत्त से बत्तर होते जा रहे हैं। जहां गांव के सरपंच सीधे काम नहीं कर पा रहे जिससे पंचायतों में विकास व्यवस्था डगमगाती दिखने लगी है। इतना ही नहीं सूत्र यही भी बता रहे हैं कि बगैर दलालों के पंचायतों को काम भी नहीं मिलते मजबूरन सरपंचों को कथित दलालों की शरण लेनी पड़ रही है। सरपंच अगर सीधे काम करने की कोशिश करता है तो काम ही नहीं मिलते जिसके चलते गांव के लोगों के ताने और नाराजगी सरपंचों को झेलनी पड़ती है। यही वजह है कि ऐसी स्थिति में कुछ सरपंचों के पास इन्हीं दलालों का सहारा लेने के सिवाय कोई और विकल्प नहीं हैं जिससे कहीं न कहीं पंचायत क्षेत्र में कैसे भी काम हो सकें और जनता की नाराज़गी से बचा जा सके। कुल मिलाकर ऐसी बिगड़ती स्थिति में बड़े नेताओं और जिम्मेदार अफसरों को ध्यान देने की जरूरत है। ताकि गांवों का विकास हो सके गांव का विकास होगा तभी मोदी जी का 2047 तक भारत को विकसित





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